Shahryar Suno by Gulzar

Category: Poetry
Publisher: Vani Prakashan

शह्रयार सुनो…. – हिन्दुस्तानी अदब में छठा दशक शह्रयार के नाम है जिसने छठे दशक की शुरुआत में शायरी के साथ उर्दू अदब की दुनिया में अपना सफ़र शुरू किया। शह्रयार मानवीय मूल्यों को सबसे ऊपर मानते हैं। वे दो टूक लहजे में कहते हैं कि हिन्दी और उर्दू अदब के मक़सद अलग नहीं हो सकते। शह्रयार को अपनी सभ्यता, इतिहास, भाषा और धर्म से बेहद लगाव है, लेकिन इनका धर्म संस्कृति को जानने का एक रास्ता है और संस्कृति व समाज की आत्मा को पहचाने बिना शायरी नहीं की जा सकती। शह्रयार की शायरी में एक अन्दरूनी सन्नाटा है। फ़ैज़ की साफ़बयानी और फ़िराक़ की गहरी तनक़ीदी और तहज़ीबी कोशिश उसे कतरा करके भी शह्रयार ने उन्हीं की तरह, लेकिन उनसे अलग वो इशारे पैदा किये हैं जो कविता के इशारे होते हुए भी इन्सान के बेचैन इशारे बन जाते हैं—’ग़मे जाना’ के साथ-साथ ‘ग़मे दौराँ’ के इशारे। शह्रयार की ख़ूबी यही है कि उनकी रचना का चेहरा निहायत व्यक्तिगत है, लेकिन उसमें झाँकिये तो अपना और फिर धीरे-धीरे वक़्त का चेहरा झाँकने लगता है। शह्रयार ने काल्पनिक सृजन-संसार की बजाय दुनिया की असलियत को ग़ज़लों के लिए चुना है। उनकी शायरी में आज के शहरी जीवन और औद्योगिक विकास के बीच गिरते इन्सानी मूल्यों को लेकर बेहद चिन्ता है। शह्रयार ग़ज़ल और नज़्म के आज बेहद लोकप्रिय और बुलन्दपाया शायर हैं। शह्रयार ने तरह-तरह और नये से नये अन्दाज़ में अपनी बात कही है। शायर की इसी छटपटाहट के तहत उनकी शायरी ने जो करवटें बदली हैं, उसमें पुरानी सलवटें नहीं हैं।—कमलेश्वर

The author: Gulzar