Category: Screenplay
Publisher: Radhakrishna Prakashan
हमारे दौर के असाधारण फ़िल्मकार और शायर गुलज़ार की फ़िल्म ‘मीरा’ की यह स्क्रिप्ट मीरा की जीवन-कथा का बयान-भर नहीं है। यह मीरा को देखने के लिए एक अलग नज़रिए का आविष्कार भी करती है।
जैसा कि स्वाभाविक ही था, माध्यम की ज़रूरतों के चलते, इस पाठ में मीरा हमें कहीं ज़्यादा मानवीय और अपने आसपास की देहधारी इकाई के रूप में दिखाई देती हैं; लगभग दैवी व्यक्तित्व नहीं जैसा कि इतिहास के नायकों के साथ अकसर होता है, और मीरा के साथ भी हुआ।
लेकिन मीरा के मानवीकरण में माध्यम की आवश्यकताओं के अलावा काफ़ी भूमिका ख़ुद गुलज़ार साहब की और एक रचनाकार के रूप में उनके रुझान की भी है। अपने गीतों में वे हवा, धूप और आहटों तक का मानवीकरण करते रहे हैं; फिर मीरा तो जीते-जागते इंसानों से भी कुछ ज़्यादा जीवित मानवी थीं।
मीरा और उनके युग का पुनराविष्कार करनेवाली फ़िल्म की स्क्रिप्ट के अलावा इस पुस्तक में गुलज़ार से उनके रचनाकर्म के बारे में यशवंत व्यास की एक लम्बी बातचीत भी है और साथ है ‘मीरा’ के निर्माण में आनेवाली मुश्किलों के बारे में गुलज़ार का एक संस्मरण, जो इस पुस्तक को और उपयोगी तथा संग्रहणीय बनाता है। सिनेमा के विद्यार्थियों और पटकथा लेखकों को भी यह पुस्तक बहुत कुछ सिखाती है।
The author: Gulzar