Category: Screenplay
Publisher: Radhakrishna Prakashan
साहित्य में मंज़रनामा एक मुकम्मिल फ़ॉर्म है। यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। लेकिन मंज़रनामा का अन्दाज़े-बयान अमूमन मूल रचना से अलग हो जाता है या यूँ कहें कि वह मूल रचना का इन्टरप्रेटेशन हो जाता है।
मंज़रनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फ़ॉर्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंज़रनामे की शक्ल दी जाती है। टी.वी. की आमद से मंज़रनामों की ज़रूरत में बहुत इज़ाफ़ा हो गया है।
कथाकार, शायर, गीतकार, पटकथाकार गुलज़ार ने लीक से हटकर शरत्चन्द्र की-सी संवेदनात्मक मार्मिकता, सहानुभूति और करुणा से ओत-प्रोत कई उम्दा फ़िल्मों का निर्देशन किया जिनमें ‘मेरे अपने’, ‘अचानक’, ‘परिचय’, ‘आँधी’, ‘मौसम’, ‘ख़ुशबू’, ‘मीरा’, ‘किनारा’, ‘नमकीन’, ‘लेकिन’, ‘लिबास’, और ‘माचिस’ जैसी फ़िल्में शामिल हैं।
फ़िल्म ‘ख़ुशबू’ का मंज़रनामा शरत्चन्द्र के उपन्यास ‘पंडित मोशाय’ से प्रेरित है लेकिन पूरी तरह उसी पर आधारित नहीं है। शरत्चन्द्र के उपन्यास में प्लाट बहुत लम्बा और पेचीदा है लेकिन फ़िल्म ‘ख़ुशबू’ का मंज़रनामा लघु और प्रवाहमय है जो पाठकों को अपनी रौ में बहा ले जाने में सक्षम है। इसमें सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है बृन्दावन और कुसुम का आपसी रिश्ता, जो रवायती कहानियों से काफ़ी अलग है। कुसुम की ख़ुद्दारी उसे बृन्दावन से अलग भी रखती है और जोड़े भी रखती है, इसलिए कि वह उसका हक़ है।
पाठक इस मंज़रनामे को पढ़कर औपन्यासिक कृति का आस्वाद प्राप्त करेंगे।
The author: Gulzar